उस दिन
दूर जहां धरती आसमान मिलते दिखाई दे रहे थे,नदी के दोनों पाटों की याद दिलाने लगे जो कभी आपस में न मिलते हुए भी मिलते रहते हैं l उसका एक एक शब्द मन की गहराईयों तक उतर रहा था l समझ में आरहा था कि सत्य यही है , पर मन था कि समझना ही नहीं चाह रहा था l
समाज अभी इतना परिपक्वा नहीं हुआ है कि रिश्ते के खुलेपन को स्वीकार करे l और मजबूरी यह कि रहना तो समाज में ही है l नैतिक और अनैतिक का सवाल प्रबल हो रहा था l पर लगता था कि सागर कि लहरों ने आज कुछ और ही सोच रखा है l
दूर जहां धरती आसमान मिलते दिखाई दे रहे थे,नदी के दोनों पाटों की याद दिलाने लगे जो कभी आपस में न मिलते हुए भी मिलते रहते हैं l उसका एक एक शब्द मन की गहराईयों तक उतर रहा था l समझ में आरहा था कि सत्य यही है , पर मन था कि समझना ही नहीं चाह रहा था l
समाज अभी इतना परिपक्वा नहीं हुआ है कि रिश्ते के खुलेपन को स्वीकार करे l और मजबूरी यह कि रहना तो समाज में ही है l नैतिक और अनैतिक का सवाल प्रबल हो रहा था l पर लगता था कि सागर कि लहरों ने आज कुछ और ही सोच रखा है l