Sunday, July 26, 2015

उस दिन
दूर जहां धरती आसमान मिलते दिखाई दे रहे थे,नदी के दोनों पाटों की याद दिलाने लगे जो कभी आपस में न मिलते हुए भी मिलते रहते हैं l उसका एक एक शब्द मन की गहराईयों तक उतर रहा था l समझ में आरहा था कि सत्य यही है , पर मन था कि समझना ही नहीं चाह रहा था l
समाज अभी इतना परिपक्वा नहीं हुआ है कि रिश्ते के खुलेपन को स्वीकार करे l और मजबूरी यह कि रहना तो समाज में ही है l नैतिक और अनैतिक का सवाल प्रबल हो रहा था l पर लगता था कि सागर कि लहरों ने आज कुछ और ही सोच रखा है l

Tuesday, December 30, 2014

नव वर्ष की पूर्व संध्या

समय बीतते कहाँ लगता है देर
बस एक ही वर्ष तो बीता है…
बस एक ही ?
क्यों लगता है युग बीता, सदियाँ बीतीं
तुम सिर्फ तुम
मैं सिर्फ मैं
जानते हैं क्यों है यह एक युग एक सदी
चलो………..अब
न तुम सिर्फ तुम रहोगे
न मैं सिर्फ मैं
एक नया सवेरा, नया जीवन, नई आकांक्षाएं
नए रूप, नए सपने……
नया तुम ,नया मैं
बाकि सब?
वो सब वही पुराने, घिसे पीटे

Friday, May 23, 2014

मेरी आशंका

अब जो होगा वह तो समय के गर्भ में है. पर एक बात समझ में अब आती है कि  जर्मनी में हिटलर का अभ्युदय भी कुछ इसी तरह हुआ होगा ."तुम मेरा साथ दो मैं तुम्हें तुम्हारे अपमान का बदला अवश्य दिलाऊंगा. तुम्हें सर उठाकर चलना सिखाऊंगा." और परिणाम तो वही होना था. कौन नहीं चाहता कि वह स्वाभिमान के साथ बल्कि यूँ कहिये कि दुसरे के स्वाभिमान से ज्यादा लेकर जिए? सर उठाकर चलने के  आभा के वशीभूत होना तो स्वाभाविक ही है.
एक कहानी सुनाता हूँ........
किसी गाँव के एक कुएं में दो मेंढकों का परिवार रहता था. किसी बात पर उनमें झगड़ा हो गया.एक परिवार दुसरे पर भरी पड़ा.बरसात के आने पर जब कुआं पानी से भर गया तब कमजोर परिवार का मुखिया मेंढक बाहर निकला और एक सांप को अपने कुएं में ये कहकर ले आया कि वह सांप दुसरे मेंढक के परिवार के सदस्यों को खायेगा. अंधे को क्या चाहिए आँखें. सांप पहुँच गया जी. दुसरे मेंढक के सदस्यों को सांप  एक एक कर खाने लगा. जब सारे  ख़तम हो गए तो  सांप ने अब उसी मेंढक के परिवार को खाना शुरू कर दिया जो उसे लेकर कुएं में आया था.
यह कहानी तुष्टिकरण को समझाने के लिए शीतयुद्ध काल में अपने छात्रों  को सुनाया करता था. आज के सन्दर्भ में इस कहानी की प्रासंगिकता न रहे ऐसी कामना करता हूँ. पर डरता हूँ . भविष्य की कल्पना अतीत के अवशेषों पर ही तो की जाती है. और यकीन जानिए अतीत बड़ा ही भयानक सन्देश देता है. जब जब सत्ता एक व्यक्ति तक केन्द्रित हुआ है इंसानियत शर्मसार हुई है और हैवानियत ने नंगा नाच किया है. दुनिया की पहली सफल क्रांति के बाद कल्पना भी नहीं किया गया की नेपोलियन का उदय थोड़े ही समय में परन्तु प्रचंड रूप में हो जायेगा या फिर रूस में लेनिन के बाद स्टालिन आएगा.किसे खबर थी भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में भी आपात काल का सामना करना पड़ेगा.
हे भगवान् मेरी सारी आशंकाएं सिर्फ आशंकाएं हीं हों . वे सच न हों.

Sunday, May 18, 2014

कोई कुछ भी कहे

आज बहुत दिन के बाद मन किया की कुछ लिखा जाए . कभी किसी देश के बारे में पढ़े थे कि वहां की जनता इसलिए आगे नहीं बढ़ पाई क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति दुसरे की टांग  खींचता था . आज बिहार के सन्दर्भ में सही प्रतीत होता है. किसी बाहरी  के प्रधानमंत्री बनने पर अपने सर के बाल मुंडवाने की घोषणा करने की बात समझ में आती है. सवाल अस्मिता का जो बनता है.
क्या यह बात बिहार के सन्दर्भ में नहीं कही जासकती.जब किसी बिहार के व्यक्ति के प्रधानमंत्री बनने की बात आयी तो क्यों सभी बिहारियों  ने एक सुर से इसका विरोध किया. दुसरे करें तो बात समझ में आती है. परप्रान्त के लोग कहें तो ठीक है पर कोई बिहारी इसको कहता है तो समझ में नहीं आता  है. अब गुजरात को देखिये. जब लगा की एक गुजराती प्रधानमंत्री बनने जा रहा है तो सारी की सारी  सीटें उसे ही दे डाली. क्या यह कोई सबक नहीं है.
यह कहा जा सकता है कि यह लेख देश को तोड़ने का काम करेगा जोड़ने का नहीं. पर क्या देश को जोड़ने की जिम्मेदारी सिर्फ हमारी ही है. आप एकता अखंडता के नाम पर इस बेरहमी से दमन करते जायेंगे और हम असहनीय पीड़ा और दर्द को सहते. मैं नहीं जनता कितने लोगों ने बिहारी होने के दर्द को जाना है.मैंने देखा है और देख रहा हूँ. जो बिहारी नहीं हैं उन्हें  भी बिहारी कह कर पुकारा जाता है. बिहारी शब्द किसका पर्याय बन चूका है आज मुझे बताने की जरूरत नहीं है. और पिछले दो तिन वर्षों में हुए  परिवर्तन को भी देख रहा हूँ. यकीन जानिए परप्रान्त्वसियोंके व्यव्हार में आये इस परिवर्तन के लिए यदि कोई जिम्मेदार है तो सिर्फ नितीश कुमार  और कोई नहीं .
इतिहास ने सदैव उसे ही संजो कर रखा है जिसको वर्तमान ने सताया है. नितीश कुमार के दृष्टिकोण, उनकी क्षमता और उनकी कार्यकुशलता का विश्लेषण आने वाली पीढियां ही करेंगी. वर्तामानिक विद्वजन का अहंकार इसे देख नहीं पायेगा.
नितीश कुमार का निर्णय एक सही निर्णय है. कोई भी स्वाभिमानी व्यक्ति इस से बेहतर निर्णय नहीं ले सकता.

Sunday, August 25, 2013



किस से कहूँ , क्या कहूँ ,क्या न कहूँ

तू ठहर ,अभी रुक जरा

कर अभी इन्तेजार

बीत गए जब दिन तो क्या न बीतेंगी रातें?

बस एक पल और -

छट जायेगा अँधियारा

आयेगा नया प्रकाश नया सवेरा

ये जो बस तिनके हैं और खड़े तनके हैं

सब ढह जायेंगे उस पल

कर अभी इन्तेजार......

Sunday, January 29, 2012

Today everyone is running a race to rectify the government or system. We find people criticising the govt. now and then everywhere. Even the political system of our country is being challenged. They criticise the leaders and they themselves become the leaders. Why do they not think about our coming generation? Do they want to make our coming generation as they are? So please stop this nonsense. We should not be victim of negativity. If you can- think to form Creative groups as Scientific groups where the students can raise queries and find the solutions. Every big Political Party of our country has a Student Wing to make them future leaders. But isn't it sad that none of them has a single scientific wing which can make them another H. J. Bhabha or J. J. Bose or S. S. Bhatnagar? We must compare ourselves with the other countries but not only politically. Learn the education system of those countries also. How and What they are is the result of their education system. Any education system where an IITian becomes social reformer or leader cannot be appreciated. Right Education is the only way to discourage all the unsocial or inhuman practices.

Saturday, November 19, 2011

wishes

What a man needs for the survival? Just water,air,food and shelter or any other thing? Last few months here in India have compelled to think seriously over this matter. People who devoted themselves for the cause of humanity and served for the weaker and supressed -may be called Messiha-suddenly turned into fameseekers. I know once our physical needs get fulfilled most of the people wish to become famous and a subject of discussion. But they cannot be real heroes.